Tuesday, October 25, 2005

Comprehensive Study of India – Federal Research Division of U.S.


One should visit the following link.
http://lcweb2.loc.gov/frd/cs/intoc.html


It is the online documents of the Library of Congress of United States of America. In the header of the site, it is written thus, " Customized Research and Analytical services serving the U. S. government since 1948" (Starting of Cold War period)(Italized comments by the blogger himself).


There are ten chapters which cover the details about India from the earliest time to the present day. In the earlier chapter, the history of India is discussed in its outline. The elucidation is quite comprehensive. A person who wants a bird eye view of the whole history of India from the earliest time to the present, may find satisfied with the contents of the history portion.


For the General Studies, the candidate, who does not have history as his option, can study from here and make a good essay which may help in many possible questions in General Studies Prelims. The history is discussed in Chapter number one but covers all the main milestones (Chapter of Indian History) in history of India.


Chapter 2 is on the geography of India.


Chapter 4 is on languages, ethnicity and regionalism. The contents give the basic structure on which the personal notes can be further developed.


Chapter 5 discuss the sociological framework of the country.


Chapter 6 is on character and structure of Economy.


Chapter 8 is on Government and politics.


Chapter 9 is on foreign policy of India.


One of the most fascinating section is Bibliography. The students who are preparing from civil services may find this section very useful. The students who are interested in overall study may also find the bibliography quite interesting and useful. One can just judge the approach of getting the information about a country by another foreign country when one finds that the titles of class tenth and twelfth published by NCERT are included in the list.


The bibliography is very comprehensive and corresponding to the chapterization which has been done while giving the details of various aspects of the country. But on the whole, it turns up as one single place to decide which book can be picked to study specific aspects of the country. When one considers the gernalized outline of the syllabus of General study, the given chapterization and sub headings and then books on them can give a well defined idea and plan to a candidate to how to organise one’s study for the examination.


The students of political science and journalism must read the history of the division on the home page of the site.

Monday, October 24, 2005

Was There Any Order From Above?

आर० सी० मजुमदार ने British Paramountancy में Doctrine of Lapse पर जिस बात का खुलासा किया है वह यह है कि इस सिद्धान्त को पूरी तरह डलहोज़ी पर मडना ठीक नहीं होगा । इस सिद्धान्त को लागु करने पर जो बात मुख्य रुप से घटित हो रही थी वो यह थी कि कम्पनी का सीमा क्षेत्र बड रहा था । भारतिय राज्यों को बङी तेजी से नष्ट कर के उन के क्षेत्रों को कम्पनी राज का क्षेत्र घोषित किया जा रहा था ।


अब प्रश्न यह उठता है कि अगर कम्पनी का क्षेत्र बङ रहा था तो इस से डल्होज़ी को कोई खास फायदा हो रहा था या फिर हर हाल में कम्पनी को तो फायदा हो ही रहा था ।


यहां पर एक बात पर ध्यान देना ज़रुरी है और वह यह है कि यह सिद्धान्त १८५० में लागु हुआ और उस समय तक कम्पनी पुरी तरह पिट चुकी थी । कम्पनी घाटे पर जा रही थी । हिस्सेदारों को काफि समय से लाभान्श नहीं मिल रहा था । कम्पनी का कई व्यापारिक क्षेत्रों पर एकाधिकार खत्म हो चुका था । यहां तक कि कम्पनी के पास कोई एकाधिकार रह ही नहीं गया था । कम्पनी के मुकाबले में कई बरतानवी व्यापरी व्यापार कर रहे थे । १८५३ में चार्टर एक्ट में यह स्पष्ट व्यवस्था कर दी गई थी कि कम्पनी अपने कर्जदारों को जल्द से जल्द अदायगी करेगी एंव कम्पनी को बन्द करने की प्रक्रिया की शरुआत की जाऐगी । यहां तक की चार्टर में यह तक भी अकिंत नहीं किया गया था कि कम्पनी को और कितने सालों तक बने रहने कि अनुमति दी गई थी ।


इन सब बातों को ध्यान में रख कर अगर इस तथ्य की समीक्षा की जाए कि कम्पनी धङा धङ अपने क्षेत्र बढाए जा रही थी तो यह प्रशन सभाविक हि उठ खङा होता है कि वह ऐसा किस लिए कर रही थी । इस बात को दूसरे शब्दों में भी पूछा जा सकता कि ऐसे हालातों में डल्होज़ी को क्या ज़रुरत पङी थी कि वह कम्पनी का क्षेत्रफल बढाए जा रहा था जब कि कम्पनी को बन्द करने के स्पष्ट संकेत आरहे थे । यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि वो जिस भी क्षेत्र का विलय करता था उस की मन्जुरी उसे बोर्ड आँफ ड्रायक्टर्स से लेनी पङती थी और उसे वह मन्जुरी असानी से मिल भी जाती थी ।


इन सारी बातों की समीक्षा करते हुए मजुमदार यह तर्क देता है कि विलय की नीति डल्होज़ी पर नहीं मङी जानी चाहिए । यह ठीक है कि यह सारा काम डल्होज़ी के हाथों हुआ और डल्होज़ी ने भी कोई कसर नहीं छोडी । उस ने तो बडी शान से हर एक विलय को अपने नाम पर गङते हुए इस बात का गर्व किया कि उस ने यह सब किया । मजुमदार ने स्पष्ट किया है कि उस के इस खेल में बोर्ड आँफ कन्ट्रोल पूरा पूरा भागिदार था । बोर्ड आँफ कन्ट्रोल के ही ईशारे पर डल्होज़ी यह हौंसला कर सका । क्योंकि बोर्ड आँफ कन्ट्रोल का ईशारा था तो हि बोर्ड आँफ ड्रायक्टर्स से मन्जुरी मिलती गई । ड्रायक्टर्स तो यह जानते थे कि अब उन की कम्पनी तो रद्ध होने वाली है और जो कुछ भी कम्पनी हिन्दुस्तान में बनाए बैठी है उस सब की जिम्मेवारी ब्रिटिश सरकार ही ले सकती है एंव लेने वाली है क्योंकि कम्पनी तो बुरी तरह पिट चुकी थी । अगर सरकार कि ओर से ईशारा है तो उन्हें क्या दिक्कत हो सकती थी । और ऐसा हि हो रहा था ।

अतः विलय की नीति के कर्त्ताधर्त्ता ब्रिटिश सरकार खुद हि थी । कम्पनी या डल्होज़ी का नाम तो अपने पाप छुपाने के लिए किया गया एंव अपने कार्य को न्यायिक दिखाने के लिए किया गया ।

विलय की नीति के मुख्य कर्त्ताधर्ता

Sunday, October 23, 2005

Doctrine of Lapse - A Cause of Uprising of 1857 - A New Aspect

लैप्स का सिद्धान्त - १८५७ के गदर का कारण: एक नया पक्ष:-

लैप्स का सिद्धान्त १८५७ के विद्रोह का कारण तो था हि पर इस सिद्धन्त को लागु करते समय जो कार्यवाई की जाती थी वह इस सिद्धान्त के विरुद्ध विद्रोह का ज्यादा प्रभावकारी क़ारण बनी । यह एक ऐसा पक्ष है जिन्हें किताबों में ज्यादा उजागर नहीं किया गया है ।

लैप्स के सिद्धान्त के अधार पर अंग्रेजों ने नागपुर को अपने कब्जे में कर लिया था । इस के बाद उन्होंने भोंसले परिवार की सम्पति जब्त कर के उसे बेचने का प्रोग्राम बनाया । महल के पशु, घोडे एंव हाथी नागपुर के पास जानवर मण्डी में ओनेपोने दामों में बेच दिए गए । महल के जेवराहत कौलकत्ता में निलामी के लिए भेज दिए गए । वहां निलामी इस प्रकार से करवाई गई कि वहां अभुषण कम दामों में बिके । इस के बाद महल का फर्निचर बेचने का प्रोग्राम बनाया गया । यह सारी गतिविधियां भौंसले परिवार के लिए अति अपमानजनक थीं । महल की वृध राजरानियां बहुत क्षुब्ध एंव भडकी हुईं थीं । इस से जनता जिन के मन में राजमहिल की वृध महिलायों के लिए बहुत आदर था, वह भी भडक उठे । उन का यह अन्जाम दुसरे राज परिवार वाले भी देख रहे थे । उन्हें भौंसले परिवार की रानियों की अपमानजनक स्थिति में अपने से भविष्य में हो सकने वाली दुरदशा की झलक दिखाई दे रही थी ।


लैप्स का सिद्धान्त तो एक कानुनी मुद्दा था । यह सिद्धान्त तो विद्रोह का कारण बना ही बना पर इस के साथ जो लूटखसोट प्रशासनिक पर उपयोगवहिन एंव अन्यायिक कार्यवाइयां की गई वह खुद में विद्रोह भडकाने के लिए काफि थीं । इस बात को आर० सी० मजुमदार ने सफलता पूर्वक उजागर किया है परन्तु प्रचलित इतिहास की किताबों में इस बात को अच्छे से उभारा नहीं गया है ।

Tuesday, October 04, 2005

World History Blog: Main Causes of the Great Depression

It is a good article. It is inform of a note. The contents are based on research and judgements are authoritative in nature.